है कितनी आवश्यकता -यह महंगाई डायन हे के कम ही नहीं होती हे -ब्लाग चौपाल- राजकुमार ग्वालानी
>> Thursday, January 6, 2011
सभी को नमस्कार करता है आपका राज
बास्केटबॉल के अंतरराष्ट्रीय कोच राजेश पटेल कहते हैं कि राजधानी रायपुर में तैयार हो गए इंडोर स्टेडियम से न सिर्फ बास्केटबॉल के बल्कि इंडोर में खेले जाने वाले हर खेल के खिलाड़ियों का खेल निखरेगा। इस इंडोर स्ट...
दोस्तों हमारे देश के प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह की खासमखास महंगाई इनकी निकटतम रिश्तेदार हे इसलियें यह महंगाई बेरी देश की जनता के लियें डायन बन गयी हे , भये देह के नेताओं को तो सर्किट हाउस सुविधा हे और सर्कि...
सात पुश्तों के लिए खरबों जोड़ने वाला ‘नेता’ यहाँ देशद्रोही नहीं होता. सोने की चैन तथा गोरी मेम पर बिक जाने वाला और देश की सुरक्षा को खतर...
लंबे अरसे के बाद शिक्षा विभाग के टीचिंग व नॉन टीचिंग स्टाफ का डाटा ऑनलाइन करने की तैयारी की जा रही है। शिक्षा निदेशालय की तरफ से इस संबंध में सभी जिले के डीईओ को आवश्यक दिशा-निर्देश जारी कर दिए गए हैं। विद...
है कितनी आवश्यकता , चिंतन मनन की , आत्म मंथन कि , कभी इस पर विचार किया , क्या सब तुम जैसे है , इसपर ध्यान देना , जब विचार करोगे , अनजाने न बने रहोगे सागर से निकले हलाहल, का पान कर पाओगे , तभी शिव होगे , संसा...
आज प्रस्तुत है, ‘टी सीरीज’ म्यूजिक कंपनी द्वारा सन् 1993 में रिलीज रेखादेवी जलक्षत्री द्वारा प्रस्तुत भरथरी गायन श्रृंखला का तीसरा प्रसंग… 1. राजा का जोगी वेष में आना 2. चम्पा दासी का जोगी को भिक्षा देना 3...
लीजिये नए साल पर आपके लिए कुछ जरूरी सलाह है यहाँ ... देख लीजिये ... एकदम मुफ्त है मुफ्त ... पर है काम की !! साल २०११ में समृद्धि के ११ मंत्र आप लोग नए साल में खूब समृद्धि करें इसी दुआ के साथ अब आज्ञा चा...
प्रिय ब्लॉगर मित्रो , प्रणाम ! *ब्लॉग 4 वार्ता* के इस मंच पर नए साल में आप सब से पहली बार एक वार्ताकार के रूप में मुखातिब हो रहा हूँ ... आशा है आप सब का नया साल खूब बढ़िया तरीके से बीत रहा है ! खबरों क...
देशद्रोह, नया तमगा है उस आवाज़ का जो चीख पड़ती है, बरबस ही सोते मासूमो के क़त्ल पर ! जंगलो , पहाड़ो पर दौड़ती , हांफती , उस जिन्दगी का जो भागती नहीं जीतना चाहती है मौत की लम्बी होती परछाई से ! थकी, हा...
आज वो ऐसे धर्मसंकट में थी जहाँ एक तरफ उसके पति की अंतिम इच्छा थी तो दूसरी तरफ पति का ही वचन था किसे वो ज्यादा महत्व दे , बस इसी निर्णय पर पहुँच की कोशिश में वो समय के उस मोड पर पहुँच गयी जहाँ पर उसने ...
उपमा हमेशा उस चीज़ से दी जाती है जो कि उससे बड़ी हुआ करती है Non sense
दिव्या कथन विश्लेषण 2011 गतांक से आगे ... आदरणीया बहन दिव्या जी (डा. दिव्या जी) , आपको ऐतराज़ है कि मैंने आपकी तुलना देशभक्तों से क्यों नहीं की ? आपकी तुलना देशभक्तों से करने का क्या तुक है ? देश के लिए जान ...

वाराणसी के कई मोक्ष दायिनी समझी जाने वाली जल कुंड घातक बीमारियों का कारक बन चुके हैं। इसमें स्नान या जल ग्रहण करने से आप लीवर सिरोसिस या त्वचा संबंधी रोग का शिकार हो सकते हैं। इस तथ्य का खुलासा काशी हिंदू ...
आप पाठक आज फैसला कर ही दें कि कौन सही है और कौन गलत ??
व्यस्तता की वजह से पिछले दो महीने से मैं ब्लॉग जगत में काफी सक्रिय नहीं रह पा रही हूं , फिर भी न चाहते हुए भी साइंस ब्लॉगर एसोशिएशन के एक लेख में योगेश नाम के किसी पाठक ने अपने सवाल जबाब में उलझा दिया ...

5 comments:
एक से बढकर एक उम्दा लिंक्स लगाये हैं…………आभार्।
बढिया चौपाल
राज जी आज हम यूँ ही ब्लाग की दुनिया मे घूमते घूमते आपकी चौपाल मे आ गये ।
बहुत अच्छा लगा ये देख कर कि आपने हमे अपनी चौपाल मे शामिल कर रखा है ।
अच्छी रच्नाये पढने को मिली । धन्यवाद ।
(डिसक्लेमर: बुरा ना मानो काड़ी है)
दुनिया में सबको जीने का हक है, काड़ीबाज़ों को भी। आजकल कुछ लोग सच्चे काड़ीबाज़ों के खिलाफ अभियान चला रहे हैं क्योंकि सच्चे काड़ीबाज़ ब्लॉगिंग की आड़ में पाखंड करने वालों की काड़ीबाज़ी की पोल खोल रहे हैं। हमारे पास वक्त नहीं है का बहाना करके तीन-तीन लंबी चौड़ी पोस्ट लिखकर हर किसी के फटे में टांग अड़ाने वाले लोग ही काड़ीबाज़ों के सबसे ज़्यादा पीछे पड़े हैं। जिस तरह से रोज़ सुबह-सुबह पोस्ट के नाम पर कुछ भी लिख मारना कुछ लोगों का पेशा होता है उसी तरह से काड़ीबाज़ों का भी पेशा होता है। लेकिन वो बेचारे ना तो किसी को गाली देते हैं, ना किसी के पीछे बेवजह पड़ते हैं, कोई बुरा माने तो तुरंत गलती मान लेते हैं, किसी के सामने बेवजह अपनी हांकते नहीं है, झूठ बोलकर अपनी शान नहीं बघारते हैं, फिर उनका इतना विरोध क्यों। काड़ीबाज़ों के खिलाफ जो लोग(वैसे ये इक्का-दुक्का ही हैं, बड़ी दुर्लभ प्रजाति हैं) पड़े रहते हैं उन पर अब काड़ीबाजों को भी शक होने लगा है कि कहीं वो लोग अपनी TRP के लिये ही तो काड़ीबाज़ों को नहीं उकसाते हैं। क्योंकि ये लोग काड़ीबाज़ी का तो ज़िक्र करते हैं लेकिन वो पोस्ट नहीं छापते हैं जिसमें काड़ीबाज़ी की गई होती है। काड़ीबाज़ों की अपनी भी कोई इज्जत है, कोई उनकी इज्जत पर इस तरह से कीचड़ नहीं उछाल सकता है। जिस तरह से कुछ बगुला भगत ब्लॉग जगत में तथाकथित भाई चारा बढ़ाने के लिये आये हैं उसी तरह से काड़ीबाज़ भी तो इन रंगे सियारों का रंग उतारने की कोशिश कर सकते हैं। कुछ गलत कहा हमने भाई साहब। गलत कहा तो माफ कर दीजियेगा, सही कहा हो तो ठहाका मारकर हंसियेगा और बुरा लगा हो तो माफ कीजियेगा। हमारे धंधे का भी ध्यान रखिये, रोज़ी-रोटी चलने दीजिये हमारी भी। अपने आपको महात्मा साबित करने की कोशिश में हमारी इज्जत का फालूदा मत बनाइये। वरना हमको भी कहना पड़ेगा, दुनिया के काड़ीबाज़ो एक हो जाओ।
भाषा,शिक्षा और रोज़गार ब्लॉग का आभार स्वीकार किया जाए ग्वालनी साहब।
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