तीन अवाज़ें.....तीन रंग -पाक : पत्रकारों के लिए बेहद ख़तरनाक-ब्लाग चौपाल- राजकुमार ग्वालानी
>> Thursday, December 16, 2010
हमारे नाम से एक लिफाफा आया है जिसमें किसी ब्लाग में की गई टिप्पणियों की कुछ कतरनें हैं। हमें समझ नहीं आ रहा है कि आखिर इन कतरनों को हमें भेजने का मतलब क्या है। लिफाफा हमारे प्रेस के पते से आया है। इससे एक...
अलवर के सरिस्का बाघ अभ्यारण्य में बाघों की निरंतर घट रही संख्या से चिंतित केंद्र सरकार ने इस इलाके के गाँव को तहस नहस कर दूसरी जगह पुनर्वसित किया हे और इसका कार्य अभी जारी हे सरिस्का में आबादी के होने से ब...
पूरे २ जी घोटाले में बहुत बड़े पैमाने पर अनियमितता के सामने आने पर आख़िर कार सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाते हुए २००१ से पूरे मामले की जांच सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय से करने के आदेश दे दिए हैं. पूरे माम...
उजळी द्वारा अपने प्रेमी जेठवा के विरह में लिखे दोहे - जळ पीधो जाडेह, पाबसर रै पावटे | नैनकिये नाडेह, जीव न धापै जेठवा || मानसरोवर के कगारों पर रहकर निर्मल जल पिया था तो हे जेठवा अब छोटे छोटे जलाशयों के

कभी किसी गधे को ध्यान से देखिएगा...वाकई उसके जैसा भोला, शरीफ़ और दीनहीन आपको और कोई प्राणी नहीं दिखेगा...गधे पर पिछले साल 20 दिसंबर को एक पोस्ट लिखी थी...आज फिर किसी ने गधे की व्यथा सुनाई तो इस भोले प्राणी...
पत्रकारों के अधिकारों केलिए काम करने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था सीपीजे यानी ‘कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स’ ने कहा है कि आत्मघाती हमलों में बढ़ौतरी के कारण पाकिस्तान पत्रकारों के लिए दुनिया का सब से ख़तर...
कभी *साहिर लुधियानवी * ने ताज को नकारते हुए कहा था...... *इक शहंशाह ने दौलत का सहारा ले कर, * *हम गरीबों की मोहब्बत का उड़ाया है मज़ाक.* *मेरी महबूब कहीं और मिला कर मुझसे. *इस लम्बी और पुरसोज़ नज्म में साहि...
अपनी एक कहानी में मैने जिक्र किया था कि कैसे , छोटे शहरों से आकर महानगरो में बसे लोग ,अपने बच्चों के ऊपर ज्यादा ही प्रतिबन्ध लगाते हैं , और जैसे उन्हें एक जिद सी होती है लोगो को दिखाने की कि मेरे बच्चो...
लोग कहते हैं,आंकड़े कहते हैं,अख़बार कहते हैं,संचार तंत्र कहते हैं कि महंगाई बढ़ रही है,जनसँख्या बढ़ रही है,चोरियां बढ़ रही है सर्दी बढ़ रही है पर कोई यह क्यों नहीं कहता की नेतागर्दी बढ़ रही है क्यों क्या आपने न...
किसी सहर की ताजगी तुम हो
किसी सहर की ताजगी तुम हो गुलों की हसीन सादगी तुम हो नहीं जाता मैं सजदे में कहीं पे मेरा खुदा तुम हो बंदगी तुम हो मेरे तरन्नुम पे रक्स करती हुई अब ख्यालों की मौशिकी तुम हो यूँ ही नहीं गुम तुम्हारे ...

बहुत हो गया। वर्षों से बदनामी का दंश सहते-सहते पूरी खरगोश जाति ग्लानी से पूरे जंगल में मुंह छुपाए रहती थी। भले ही कोई अब कुछ ना कहता हो पर शर्म के मारे खरगोशों की किसी उत्सव या जश्न मे भाग लेने की इच्छा नह...
कल फिर मिलेंगे
1 comments:
सुन्दर चौपाल्।
Post a Comment