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खुशबुओं का सौदागर -ओ स्त्री...बच के तुम जाओगी कहाँ....भला...!!??- ब्लाग चौपाल- राजकुमार ग्वालानी

>> Tuesday, December 21, 2010

सभी को नमस्कार करता है आपका राज
 
 
पश्चिम बंगाल के शिक्षाजगत में वफादारों और बाहुबली गिरोहों में जंग छिड़ी हुई है। राज्य में छात्रसंघ चुनावों का सच है कि वाम छात्र संगठन अपने विरोधी को नामांकन जमा नहीं करने देते। फलतःहिंसा हो रही है। एक-दू...
 
नमस्कार, पैट्रोल के दाम बढने का सीधा असर बाजार पर हो रहा है। मंहगाई बढते जा रही है। प्याज और लहसून के दाम तो आसमान छू रहे हैं। जब से कांग्रेस सरकार ने दिल्ली की गद्दी संभाली है। तब से रोजमर्रा के सामानो...
 
यूँ बेतहाशा भागने से कवायद नहीं होती रोज घूँट घूँट पीने से तरावट नहीं होती। चुप रहते जब कहते हो क्या खूब कहते हो लब हिलते हैं, आवाज सी रवायत नहीं होती। ज़ुदा हुआ ही क्यों कमबख्त हमारा इश्क़ आह भरते हैं ...
 
अपनी जगह किसी दूसरे को बैठाकर परीक्षा दिलाना तीन लड़कियों को भारी पड़ गया और काउंसिलिंग के दौरान कारनामा सामने आ गया। नतीजा, अधिकारियों की शिकायत पर हवाई अड्डा थाना पुलिस ने तीन लड़कियों को गिरफ्तार कर लिय...
 
तुम्हारे दंभ को हवा नहीं देती हूँ तुम्हारी चाहतों को मुकाम नहीं देती हूँ अपने आप में मस्त रहती हूँ संक्रमण से ग्रसित नहीं होती हूँ तुम्हारी बातों में नहीं आती हूँ बेवजह बात नहीं करती हूँ तुम्हारे मानसिक ...
 
बाहरी दिल्ली के नरेला में एक फेक्ट्री में लिफ्ट में फसने से के व्यक्ति कि मोत हो गयी...हादसा इतना भयानक था कि फेक्ट्री में काम कर रहे प्रमोद नाम के उस शख्स का सर से धड हो अलग हो गया...इस मजदूर का सिर...
 
उनकी ख़ामोशी को समझना उनको समझने से भी मुश्किल काम है... * * * *क्या है यह ख़ामोशी? क्यूँ ये सुनाई सी देती है? ख़ामोशी जितनी लम्बी हो उतनी ही तेज़ सुनाई देती है, मगर इसकी आवाज़ में लफ्ज़ नहीं होते, यह सुबक...
 
पूरा पत्रकार जगत,कारपारेट जगत,पूरा राजनैतिक क्षितिज राडिया की दलाली में खुलासे से लाल-पीला हो रहा है।ऐसा लग रहा है,जैसे राडिया ने कोई नया कार्य किया हो।कभी भी राडिया के द्धारा किये कार्यों को जायज नहीं मान...
 
दुनिया उसे खुशबुओं के सबसे बड़े संग्रहकर्ता के रूप में जानती थी. हर साल वो एक महीने के लम्बे टूर पर निकलता और दुनिया के अनछुए कोनों तक सफ़र करता...तरह तरह के इत्र इकठ्ठा करता. उसका इत्र खरीदने का तरीका भी ...
 
हर रोज़ सवेरे उठता हूँ, खिड़की से बाहर तकता हूँ, सोचता हूँ - पौधों में कली लगी होगी, अपनी बगिया भी सजी होगी, हर तरफ फिजा छाई होगी | और शायद तू आई होगी | पर ये हवा बहार नहीं लाती है, हर रोज़, तू नहीं आती है ...
 
भग मानसिक रोगी होने की सीमा तक भारतीयता को भुला बैठे हों। जिस देश के अधिकांश राजनेता और अधिकारी, "बेशर्म, बेईमान, बेदर्द और मूर्... 
 
शाबास सचिन--- यद्यपि क्रिकेट के बदशाह सचिन तेन्दुलकर की ५०वीं सेन्चुरी पर फ़िर उन्हें”भारत-रत्न’ प्रदान करने की आवाजें उठने लगी हैं, परन्तु हम इस बात पर उन्हें इस सम्मान के अधिकारी नहीं समझते, यह उनका अप...
 
कांग्रेस जनरल सेक्रेटरी , दिग्विजय सिंह के , ATS chief स्वर्गीय करकरे जी के सन्दर्भ में बयान ने भारत की आतंकवाद के खिलाफ जंग को गहरी ठेस पहुंचाई है। माननीय चिदंबरम जी " भगवा-आतंक " द्वारा पहले ही काफी शोह...
 
कदमों के निशां . जन्म के बाद की आनिश्चितताएँ और जीवन के अंतिम पड़ाव से पहले सांसों के इस सफ़र में मेरी जिन्दगी जिन राहों से गुजरेगी मुझे तय करना है .... कि..... उन राहों पर मेरे कदमों के निशां रहेंगे या नहीं...
 
ओ स्त्री...बच के तुम जाओगी कहाँ....भला...!!??
ओ स्त्री...बच के तुम जाओगी कहाँ....भला...!!??* *एय स्त्री !!बहुत छट्पटा रही हो ना तुम बरसों से पुरुष के चंगुल में…* *क्या सोचती हो तुम…कि तुम्हें छुटकारा मिल जायेगा…??* *मैं बताऊं…?? नहीं…कभी नहीं…कभी भी नह...
 
चटक चांदनी फीकी सुबहें मौसम का अंदाज़ है सुबह हवा ने ...बतलाया था सूरज कुछ नाराज़ है धुंध लपेटे चुप पड़ा है बड़ा बिगड़ा नवाब है
 
 
 
 
 
 अच्छा तो हम चलते हैं
कल फिर मिलेंगे
 
 
 
 
 
 
 
 

1 comments:

शिक्षामित्र December 22, 2010 at 8:10 AM  

एग्रीगेटरों की कमी के इस दौर में,चर्चाओं का महत्व बढ़ा है। भाषा,शिक्षा और रोज़गार ब्लॉग की पोस्ट लेने के लिए भी आभार।

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