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वफा जिनसे की बेवफा हो गए-हम उऩके शहर में खो गए-ब्लाग चौपाल- राजकुमार ग्वालानी

>> Tuesday, June 8, 2010

सभी को नमस्कार करता है आपका राज  

ब्लाग जगत आज कुछ कवितामय लग रहा है। वैसे आज हमने भी अपने ब्लाग राजतंत्र में एक चार लाइन की कविता ही लिखी है। ऐसे में जबकि हमें लग रहा है अपने ब्लागर मित्र आज कुछ ज्यादा ही रूमानी हो गए हैं तो हमने सोचा कि चलो आज की चर्चा को भी कुछ रोमांटिक बनाया जाए। देखें अपने ब्लागर मित्र क्या कहते हैं-
तुझे तेरे शहर में. दिल से तलाश करता हूँ दोस्तों आस.- वादे के मिलन की करता हूँ. प्यारे दोस्तों.....मेरी ये अजीब फितरत है मिलन चाहत की प्यास दिल में पैदा करता हूँ. 
जीवन नदिया की धार है, ख्वाइशे बहता पानी है, बयाँ लफ्जों में करूँ कैसे, दो दिलों की कहानी है!* * पानी में उठ रहे है जो बुलबुले बारिश की बूंदों से, मौसम के कुछ पल और, न खुलने की निशानी है! * *रुकावटें बहुत सी
नींद* *-----* दक्षिण दिशा में गया है एक नीला घोड़ा बहुत घने मुलायम अयाल हैं और आँखें हैं गहरी काली और सजल नंगी है उसकी पीठ पर्वतों से गुजरता वह दक्षिण दिशा के बादलों में दाखिल हो चुका है ***** *बारिश...
हमेशा की तरह इस बार भी कछुवे और खरगोश की दौड़ प्रतियोगिता में, खरगोश हार गया...सबको बहुत हैरानी हुई, सबने सोचा कि अब तक तो खरगोश को सबक सीख ही लेना चाहिए था ...आख़िर क्या वजह है कि ये फिर हार गया ...!
 डॉ० डंडा लखनवी कहते हैं- गीत : समय की रामायण गीता .....................
-रवीन्द्र कुमार राजेश* * * *कविता की अविव्यक्ति समय की रामायण गीता।* *सबकी अपनी व्यथा कथा है, अपनी राम कहानी,* *भाग्य भरोसे चले ज़िदगी, क्या राजा, क्या रानी,* *द्वापर की  
मनोज कहते हैं- मन हो गया उदास
मन हो गया उदास* -- करण समस्तीपुरी बहुत दिनों के बाद नहीं हो जब तुम मेरे पास ! बहुत दिनों के बाद आज फिर मन हो गया उदास !! जान रहा हूँ मैं भी है यह बस कुछ दिन की बात, पर दिन लम्बा लगता तुम बिन, लम्...
  
एक लड़की** जो मां की पुरानी खांसी मकान मालिक की धौंस से जानती है निपटना इंच-इंच भर लड़ते हुए एक लड़की जो भाई की बेकारी पिता का दर्द ओढ़ते हुए जानती है जीना इंच-इंच भर अड़ते हुए* *एक लड़की जो...
  
मैं 'शकील' दिल का हूँ तर्जुमाँ कि मुहब्बतों का हूँ राज़दांमुझे फ़ख्र है मेरी शायरी मेरी ज़िंदगी से जुदा नहींबकौल साहिर लुधियानवी :'जिगर' और 'फ़िराक़' के बाद आने वाली पीढ़ी में 'शकील' बदायूनी एकमात्र शायर हैं जिन्हों ने अपनी कला के लिए ग़ज़ल का क्षेत्र चुना
  
गज़ल- रंग- ए - दुनिया
देख  बाग़-ए- बहार   है दुनिया चमचमाता निखार है दुनिया । कौन जाने किसे मिले क्या क्या एक खुला सा बज़ार है दुनिया ।जेब में नोट और दिल खाली वाह क्या माल दार है दुनिया ।क्यों ज़रा भी सुकूं नहीं दिल मेंदेख तो लालाज़ार है दुनिया ।शान
जी.के. अवधिया फरमा रहे हैं- मतलब निकल गया है तो पहचानते नहीं 
युवक ने पहली बार अपनी गर्ल-फ्रेंड को अपने कमरे में इन्व्हाइट किया। लड़की इन्व्हीटेशन कबूल करके उसके साथ चल पड़ी। लड़के का कमरा ऊपर की मंजिल पर था जिसके लिये लकड़ी की सीढ़ियाँ बनी थीं। चौथी सीढ़ी के बाद पाँचवी सी... 
अजय-दृष्टि में अजय सक्सेना कहते हैं- घर में निरूपमा राय और बाहर मल्लिका शेरावत ...?

ऐसा क्यों है कि भीड़ में या * *सूनसान में अकेली लड़की को पा कर * * मर्दो के अंदर का ‘रावण’ जाग ही जाता है..... ???? * ** * * 
शिल्पकार के मुख से में ललित शर्मा कहते हैं- मैं बादल की सहेली
हवा है मेरा नाम मैं बादल की सहेली आकाश पे छा जाती हूँ मैं बनके पहेली आँधियों ने आ के मेरा घर बसाया आकाश के तारों ने उसे खूब सजाया चली जब गंगा की ठंडी पुरवैया धुप के आंगन में खिली बनके चमेली चुपके आ के कान ...
 जीवन के पदचिन्ह में सुधीर कहते हैं- केहि बिधि मिट्टी से मिट्टी मिल जावे...

मित्रों, ऐसे ही फुर्सत के कुछ लम्हों में एक ताल के किनारे बैठे हुए, मेरोरियल डे के दिन (मई ५, २०१०) चंद पंक्तियाँ मन में उपजी...उन्हें सूफियाना रंग और विस्तार देकर प्रस्तुत कर रहा हूँ, वैसे तो सूफी गीतो...
सूर्यकान्त गुप्ता कहते हैं- पोस्ट और मित्रों के आशीर्वाद (टिपण्णी)
"ॐ हं हनुमते नमः " = बात पते की + ताकीद करने का ढंग एकदम से हथौड़े की मार जैसा न हो + रविवार अवकाश, काश बीता होता छुट्टी जैसे हमारे ये तीनो पोस्ट तीन (३) का पहाड़ा कह रहा है. पूछेंगे कैसे? देखिये तीन ...
सात साल की उम्र में ‘मोहब्‍बत के फूल’ नाटक को देखकर एक बालक के मन में अभिनय की ललक जो जागृत हुई वह निरंतर रही, बालक नाचते गाते अपनी तोतली जुबान में नाटकों के डायलागों को हकलाते दुहराते बढते रहा। उसके बाल म...
रात बीत रही है। ज़िन्दगी में पहली बार ऐसा हो रहा है कि बीतती हुई रात अच्छी नहीं लग रही। रात के ढाई बजे बालकनी में खड़े हुए जी में बस ये आ रहा है कि सॉफ्टपीडिया सर्च करूँ, शायद कोई ऐसा सॉफ्टवेयर मिल जाये जो इस बेरहम रात को बीतने से रोक ले, या कम से कम धीमा
अच्छा तो हम चलते हैं
कल फिर मिलेंगे 

12 comments:

पी.सी.गोदियाल "परचेत" June 8, 2010 at 6:31 PM  

बहुत खूब, इस ताजी ताजी चर्चा के लिए शुक्रिया राजकुमार जी !

Shekhar Kumawat June 8, 2010 at 7:01 PM  

bahut sundar aaj ki chopal
badhai aap ko

मनोज कुमार June 8, 2010 at 7:07 PM  

शानदार चर्चा।
अच्छे लिंक्स।

राजकुमार सोनी June 8, 2010 at 8:44 PM  

आज एक बार फिर आपने चर्चा को नया आयाम दे दिया। इसी तरह लगे रहिए। आपका आभार।

संगीता स्वरुप ( गीत ) June 8, 2010 at 9:10 PM  

बढ़िया चर्चा....अच्छे लिंक्स

समयचक्र June 8, 2010 at 9:35 PM  

ताजी चर्चा के लिए शुक्रिया...

ajay saxena June 9, 2010 at 1:07 AM  

थैनच्यू अंकल

राजकुमार ग्वालानी June 9, 2010 at 1:47 AM  

कैसे हो पुत्र अजय सक्सेना, सब ठीक है। अंकल का धन्यवाद देने के लिए धन्यवाद।

Anil Pusadkar June 9, 2010 at 4:13 AM  

बधाई हो राजकुमार

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