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चवन्नी जानेमन-अठन्नी दिलरूबा, अम्मा, पैसे भेज दिए हैं-ब्लाग चौपाल- राजकुमार ग्वालानी

>> Sunday, June 13, 2010

सभी को नमस्कार करता है आपका राज

 आज सीधे चर्चा करते हैं-
 
चवन्नी जानेमन-अठन्नी दिलरूबा चवन्नी जानेमन-अठन्नी दिलरूबा बेचारा दो का नोट बीमार पड़ गया बीमार पड़ गया डॉक्टर आ गया डाक्टर आ गया, सुई लगा गया सुई थी गलत ,बेचारा मर गया बेचारा मर गया, भूत बन गया भूत बन गया, स...
 
एक अकेला चाँद बिचारा, इतने टूटे हारे दिल...सबकी तन्हाई का बोझ थोड़ा भारी नहीं हो जाता है उसके लिए. सदियों सदियों इश्क की बातें सुनता, लोग उसे सब कुछ बताते, दिल के गहरे सारे राज. चाँद एक बहुत बड़ा किस्सागो है...
 
जब मन उदास होता है ख़याल के पास होता है जो दिल में दर्द उठता है लब पे उच्छ्वास होता है पहुँचेंगे शिखर पर वो जिन्हें विश्वास होता है सच्चा प्रेम मिल जाए फिर मधुमास होता है सुधि सा जो साथी हो जीवन ख...
 
एक साथ ऊपर उठकर हवा में छलकते पैमाने, मदयम 'टन्न' की स्वर लहरी, चेहरे पे मंद-मंद बिखरती सारे दुःख-दर्द , ग़मों पर मानो कोई विजयी मुस्कराहट , और मटकती आँखों का वो नशीला अंदाज ! मुद्दत से, सोचता हूँ पता नहीं 
  
बहुत सुन्दर कालोनी है. करीब ८० मकान. अधिकतर लोग, जिन्होंने यह मकान बनवाये थे रिटायर हो गये हैं. कुछ के बेटे बहु साथ ही रहते हैं तो कुछ अकेले. कौशलेश बाबू की बहु बहुत मिलनसार, मृदुभाषी एवं सामाजिक कार्यों में बहुत रुचि लेती है. कालोनी में रह रहे बुजुर्गों
  
एक और आँखों देखा सच तथा उससे बुना शब्द जाल , शायद आपको पसंद आए :- जब तुम उसे इशारे करते हो ,शायद कुछ कहना चाहते हो ,कहीं उसकी सूरत पर तो नहीं जाते ,वह इतनी सुंदर भी नहीं ,जो उसे देख मुस्कराते हो ,उसे किस निगाह से देखते हो ,यह तो खुद ही जानते हो ,पर जब
  
तुम संग नेह की जोत जगा केहमने जीते जीवन के तम  ..!********************धीरज अरु  व्याकुलता  पल केद्वन्द मचाते जीवन पथ में ,तुमसे मिल के  शांत सहज सबमन बैठा विजयी सा रथ में !!कितने  पावन हो तुम प्रियतम
 
'आप इनसे कोई भी निजी सवाल नहीं पूछ सकते, परिवार, बच्चे किसी के भी बारे में नहीं""अगर ये खुद कुछ बताएं तो?""तो इनकी बातें बहुत ध्यान पूर्वक सुने और उनका ध्यान बांटने की कोशिश करें क्यूंकि आपलोग तो थोड़े देर में यहाँ से चले जायेंगे और इनकी यादें इन्हें
 
आग की लपटों के बीचगुब्बारे की तरह फूलती रोटियांऔर उस आंच की तपन सेलाल होता माँ का चेहरादोनों ही आग में तपकर निखरे हैंदोनों ही चूमने लायक हैक्योंकि रोटियों में स्वाद है माँ के प्यार काऔर माँ में स्वाद है उसकी ममता का
  
तुषार धवल कवि और चित्रकार हैं। उनका पहला काव्य-संग्रह ‘यह पहर बेपहर का’ सद्यःप्रकाशित हुआ है। जिन कवियों की कविताओं ने पिछले कुछ वर्षों में व्यापक चर्चा पाई है उनमें उनका नाम प्रमुख है। वो कालेज के दिनों से कविताएं लिखते रहे हैं। उसके बाद कुछ दिनों तक
 
मैंने शिकार नहीं शिकारा ही लिखा है। दरअसल पति और पत्‍नी शादी के तुरंत बाद गृह‍स्‍थी के शिकारे पर आ गिरते हैं। कश्‍मीर की वादियों जैसी खूबसूरत लगने वाली दुनिया में घर एक डल झील बन जाता है और पति और पत्‍नी...
 
अब आया ऊँट पहाड़ के नीचे* हमें क्या मालूम था, लोगों के आशीर्वाद मिल रहते थे वे थे सब "छद्म" और थे हम आँख मीचे अब न रहेगा बांस ना रहेगी बांसुरी "*घुरुवा" *हट जाएगा हम तो लेते हैं विदा इस ब्लॉग की दुनिया से, ...
 
 
अच्छा तो हम चलते हैं
कल फिर मिलेंगे 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

5 comments:

पी.सी.गोदियाल "परचेत" June 13, 2010 at 7:03 PM  

बेहतरीन चौपाल चर्चा राजकुमार जी !

Unknown June 13, 2010 at 7:19 PM  

मस्त चर्चा

मनोज कुमार June 14, 2010 at 9:26 AM  

बेहतरीन चौपाल चर्चा!

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