क्या सच में हमें पढे-लिखे कहलाने का हक है?, शान्ति के नाम पर हम ढोंगी निकले,- ब्लाग चौपाल राजकुमार ग्वालानी
>> Thursday, June 10, 2010
सभी को नमस्कार करता है आपका राज
आज मन कुछ ठीक नहीं है। हम जिस पत्रकारिता के पेशे से जुड़े हैं, उस पेशे के एक संपादक की करतूत के कारण मन खराब हो गया है। संपादक की इस करतूत की बातें हमने अपने ब्लाग राजतंत्र में लिखी हैं। चलिए आज की चर्चा की तरफ चलते हैं।
अमीर धरती गरीब लोग में अनिल पुसदकर पूछे रहे हैं- क्या सच मे हमने बहुत तरक्की कर ली है?क्या सच मे हम पढे-लिखे कहलाने का हक है?
कहने को हमने बहुत तरक्की कर ली है मगर इक्कसवी सदी मे जब हम छुआछूत की बात करते हैं तो हमारी तरक्की की पोल खुल जाती है.इंसान होकर जब हम इंसान को सिर्फ़ एक बीमारी की वजह से अलग-थलग बस्ती बसाकर जीने पर मज़बूर कर...
यह घटना मेरे बचपन की है। मेरी आयु उस समय 13-14 वर्ष की रही होगी। मेरा बचपन नजीबाबाद, उ0प्र0 मे बीता, वहीं पला व बड़ा हुआ । * *पास ही में एक गाँव अकबरपुर-चौगाँवा है, वहाँ मेरे मौसा जी एक मध्यमवर्ग के किसा...
भारत को शान्ति का महाद्वीप कहा जाता है, यह बात अपने मुंह मियाँ-मिट्ठू बनने जैसी है.शान्ति के इस टापू, गौतम-गांधी की इस जन्मस्थली को अब यहाँ-वहाँ के खून के धब्बों ने बदरंग क...
शुरुआत में किसी का कुछ दर्द रखने का प्रयास किया और अंत की पंक्ति में अपने दिल का दर्द रखने का प्रयास किया.... अगर किसी को ठेस पहुंचे तो मैं क्षमा चाहूँगा.... मिला एक शारीरिक विसंगति रूपी श्राप... उनका ...
आज कुछ भी तो ऐसा नहीं था कि यहाँ लिखा जाय .मगर तभी निगाहें पडी पर *शब्द शिखर के इस ब्लॉग पोस्ट पर* जिसमें सत्तर वर्ष में भी युवा बने रहने का नुस्खा दिया गया है .आप उस पोस्ट को पहले पढ़ लें ..फिर यहाँ आगे ...
सभी की अपनी अपनी पसन्दगी और नापसन्दगी होती है। हम जानते हैं कि पसन्द और नापसन्द व्यक्ति का अपना निजी मामला होता है इसीलिये हमारे ब्लोग "धान के देश में" में किसी पोस्ट के प्रकाशित होते ही नापसन्द का चटका लग...
शिल्पकार के मुख से में ललित शर्मा बता रहे हैं- आया यौवन का ज्वार--एक गीत
रामेश्वर शर्मा जी छत्तीसगढ एक जाने माने कवि एवं साहित्यकार हैं। इन्होने कई छत्तीसगढी फ़िल्मों के लिए गीत लिखे हैं। हिन्दी और छत्तीसगढी में निरंतर लेखन कार्य करते हैं। साथ ही साथ भोजपुरी में भी लिखते हैं।
सुख, दुख, हर्ष, विषाद को व्यक्त करने का अधिकार सभी को है, परन्तु इनके लिये कुछ शर्तें हैं, कुछ शिष्टाचार हैं। आजकल शादी विवाह एँव अन्य अवसरों पर ‘हर्ष-फायरिंग‘ का बड़ा प्रचलन हैं। यह स्टेटस- सिंबल बन गया है...
सुनील वाणी कहते हैं- कैसे कोई मेहनत की रोटी खाए!
सुनील उपाय दुःखों का अंबार है, आसूंओं की धार है, क्या हम गरीबों की जिंदगी, जानवरों से भी बेकार है। बडी-बडी समस्याओं से हम हमेशा रूबरू होते हैं। मीडिया, न्यूज पोर्टल, ब्लॉग हर जगह इनकी चर्चा होती है। उन्हीं...
जो कोई भी यह कहता है कि वह जीवन में कभी निराश नहीं हुआ तो शायद वह झूठ बोलता है। फरेब और मक्कारी का पंजा जब संवेदनशील आदमी को जकड़ता है तो आदमी मौत को भी गले लगाने के लिए आतुर हो जाता है। एक दिन ऐसे ही निरा...
कनाडा की हर यात्रा अपने आप में एक अद्वितीय यादों की महक छोड़ रही है. पिछली कई पोस्ट मोंट्रियल की यात्रा पर केन्द्रित थी और फिर वापस शिकागो चला गया था...पिछले सप्ताह व्यस्त कार्यक्रम की वजह से लाल परिवार से मुलाक़ात नहीं हो पायी थी. आज टोरंटो
अच्छा तो हम चलते हैं
कल फिर मिलेंगे
कल फिर मिलेंगे
6 comments:
ओह तो आपने भी छिट्ठा चर्छा शुरू कर दी है कई दिनो बाद ब्लाग जगत के दर्शन कर रही हूँ । शुभकामनायें
निर्मला जी वापसी में स्वागत है आपका
बढिया चर्चा
आभार
हमेशा की तरह आपकी चर्चा सुंदर है और टिकाऊ है।
बढ़िया रही ये चर्चा....
अच्छी चर्चा!
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