संभालो अपने दिल को, सभी खूबसूरत चेहरे होते नहीं बेवफा-ब्लाग चौपाल राजकुमार ग्वालानी
>> Wednesday, June 16, 2010
सभी को नमस्कार करता है आपका राज
आज हमने भी अपने ब्लाग राजतंत्र में एक कविता लिखी है। इधर जब चर्चा करने बैठे तो ब्लागों को भी कवितामय पाया। ऐसे में सोचा आज की चर्चा को भी कवितामय कर दिया जाए। एक कोशिश की है, देखे कहां तक सफल हुए हैं, ये तो आप लोग ही बताएंगे।...
जख्म जो दिए, वो रखे है मैंने ज़िंदा खरोंचकर ! ऐ जिन्दगी ! मैं संवारूं भी तुझे तो क्या सोचकर !!* * मुरादें बही सब धार में, फंसा ही रहा मझधार में, अब लाभ है क्या, सैलाब के अवशेषों को पोंछकर ! ऐ जिन्दगी !...
दिल मानव शरीर का एक मात्र ऐसा अंग है जिसकी सबसे ज़्यादा पूछपरख होती है, चाहे फ़िल्मी गानों में हो या फिर गज़ल-शायरी में. दिल बड़ा ही आवारा किस्म का अंग होता है, यह कब-कहाँ फिसल जाये, ...
आज मुझे जी भर रोने दो
आज मुझे जी भर रोने दो !बीते मधुर क्षणों को मुझकोविस्मृति सागर में खोने दो ,आज मुझे जी भर रोने दो !छुओ न उर के दुखते छाले,मेरी साधों के हैं पाले,बढ़ने दो प्रतिपल पर पीड़ाउसमें स्मृतियाँ खोने दो !आज मुझे जी भर रोने दो !मत छीनो मेरी उर वीणा,भर देगी प्राणों
आज मुझे जी भर रोने दो !बीते मधुर क्षणों को मुझकोविस्मृति सागर में खोने दो ,आज मुझे जी भर रोने दो !छुओ न उर के दुखते छाले,मेरी साधों के हैं पाले,बढ़ने दो प्रतिपल पर पीड़ाउसमें स्मृतियाँ खोने दो !आज मुझे जी भर रोने दो !मत छीनो मेरी उर वीणा,भर देगी प्राणों
यूँ तेरा नाम.........
यूँ तेरा नाम ज़माने से छिपाया हमने, सी लिए होंठ, हर इक लफ्ज़ मिटाया हमने। हैं तलबगार मगर तुझको ना चुरायेंगे, ऐसे पाया भी तो सच कहिये क्या पाया हमने। बदली बदली सी है बहती हवा ज़माने की, इसमें देखा नहीं अपना कहीं साया हमने। अब भी है प्यार मुहब्बत, बढ़के
यूँ तेरा नाम ज़माने से छिपाया हमने, सी लिए होंठ, हर इक लफ्ज़ मिटाया हमने। हैं तलबगार मगर तुझको ना चुरायेंगे, ऐसे पाया भी तो सच कहिये क्या पाया हमने। बदली बदली सी है बहती हवा ज़माने की, इसमें देखा नहीं अपना कहीं साया हमने। अब भी है प्यार मुहब्बत, बढ़के
सभी खूबसूरत चेहरे होते नहीं बेवफा
गम की शाम ढ़ल ही जाती हैजख्म दिल के मिटा ही जाती है।।खुले रखो दिल के दरवाजे तो फिर नई मंजिल मिल ही जाती है।।सभी खूबसूरत चेहरे होते नहीं बेवफामिल ही जाती है तलाशने से वफा।।चलता रहता है यूं ही ये सिलसिलाजब तक रहता है जिदंगी का कारवां।।
गम की शाम ढ़ल ही जाती हैजख्म दिल के मिटा ही जाती है।।खुले रखो दिल के दरवाजे तो फिर नई मंजिल मिल ही जाती है।।सभी खूबसूरत चेहरे होते नहीं बेवफामिल ही जाती है तलाशने से वफा।।चलता रहता है यूं ही ये सिलसिलाजब तक रहता है जिदंगी का कारवां।।
गीत मेरे ........
मेरे घर की खुली खिड़की सेअलसुबहजगाता है मुझेचिड़ियों का कलरव गान.....ठिठोली कर जाती हैरवि की प्रथम किरणअंगडाई लेते कई बार.....पूरनमासी का चाँद भीझेंपता हुआ साझांक लेता है बार -बार....झर-झर झरते पीले फूलदेते हैं दस्तकखिडकियों पर कई बार.....मीठी तान छेड़
मेरे घर की खुली खिड़की सेअलसुबहजगाता है मुझेचिड़ियों का कलरव गान.....ठिठोली कर जाती हैरवि की प्रथम किरणअंगडाई लेते कई बार.....पूरनमासी का चाँद भीझेंपता हुआ साझांक लेता है बार -बार....झर-झर झरते पीले फूलदेते हैं दस्तकखिडकियों पर कई बार.....मीठी तान छेड़
छंद प्रसंग
धार पर हम -2 : लोकार्पण और विमर्श(प्रस्तुति:विनोद श्रीवास्तव,कानपुर)11 मई,कानपुर,जुहारीदेवी महिला महाविद्यालय के प्रांगण में गीतकार वीरेन्द्र आस्तिक द्वारा सम्पादित धार पर हम-2 का लोकार्पण सम्पन्न हुआ। इस समारोह का आयोजन काव्यायन ,जनसंवाद तथा बैसवारा शोध
धार पर हम -2 : लोकार्पण और विमर्श(प्रस्तुति:विनोद श्रीवास्तव,कानपुर)11 मई,कानपुर,जुहारीदेवी महिला महाविद्यालय के प्रांगण में गीतकार वीरेन्द्र आस्तिक द्वारा सम्पादित धार पर हम-2 का लोकार्पण सम्पन्न हुआ। इस समारोह का आयोजन काव्यायन ,जनसंवाद तथा बैसवारा शोध
एक नन्हां सा दिया
दीपक नें पूछा पतंगे से ,मुझ मैं ऐसा क्या देखा तुमने ,जो मुझ पर मरते मिटते हो ,जाने कहां छुपे रहते हो ,पर पा कर सानिध्य मेरा ,तुम आत्महत्या क्यूं करते हो ,भागीदार पाप का ,या साक्षी आत्मदाह का ,मुझे बनाते जाते हो ,जब भी मेरे पास आते हो |जब तक तेल और बाती
दीपक नें पूछा पतंगे से ,मुझ मैं ऐसा क्या देखा तुमने ,जो मुझ पर मरते मिटते हो ,जाने कहां छुपे रहते हो ,पर पा कर सानिध्य मेरा ,तुम आत्महत्या क्यूं करते हो ,भागीदार पाप का ,या साक्षी आत्मदाह का ,मुझे बनाते जाते हो ,जब भी मेरे पास आते हो |जब तक तेल और बाती
कहते हैं -- अतिथि देवो भव: । हमारे देश में अतिथि का आदर सत्कार करना परम कर्तव्य माना जाता है । लेकिन ऐसा लगता है कि बदलते ज़माने के साथ यह सोच भी बदल रही हैं ।बोर्ड रूम में मीटिंग चल रही थी । अस्पताल की गर्म समस्याओं पर गर्मागर्म बहस चल ही थी । बाहर भी
स्टेज पर मोहम्मद रफ़ी साहब को गाते हुये सुनिये और नौशाद साहब भी साथ में हैं
एक बहुत सुन्दर गाना है "मधुबन में राधिका नाचे रे". स्वयं रफी साहब को गाते हुये देखिये, नौशाद साहब साथ में खड़े हैं. एक divine feeling है इस गीत में. object width="500" height="405"> रफी साहब के सबसे छोटे सुपुत्र शाहिद रफी रफिनी नाम से गोरेगांव
श्यामल सुमन दिखा कहे हैं- बचपनएक बहुत सुन्दर गाना है "मधुबन में राधिका नाचे रे". स्वयं रफी साहब को गाते हुये देखिये, नौशाद साहब साथ में खड़े हैं. एक divine feeling है इस गीत में. object width="500" height="405"> रफी साहब के सबसे छोटे सुपुत्र शाहिद रफी रफिनी नाम से गोरेगांव
याद बहुत आती बचपन की। जब करीब पहुँचा पचपन की।। बरगद, पीपल, छोटा पाखर। जहाँ बैठकर सीखा आखर।। संभव न था बिजली मिलना। बहुत सुखद पत्तों का हिलना।। नहीं बेंच था फर्श भी कच्चा। खुशी खुशी पढ़ता था बच्चा।। खेल क...
अच्छा तो हम चलते हैं
कल फिर मिलेंगे
कल फिर मिलेंगे
7 comments:
पसंद आई च्रर्चा ।
मस्त चर्चा की आपने
मस्त चर्चा
badhiya charcha...
वाह वाह वाह
साधुवाद,चर्चा के लिए
सुन्दर चर्चा..
बेहतरीन। लाजवाब चर्चा।
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