टूटे घरौंदे, दिल्ली से गाँव तक -ब्लाग चौपाल- राजकुमार ग्वालानी
>> Saturday, October 30, 2010
सभी को नमस्कार करता है आपका राज
अंदाज उनका कैसे बिन्दास हो गया महफिल में आम कलतक वो खास हो गया जिसे कैद में होना था संसद चले गए, क्या चाल सियासत की आभास हो गया रुकते ही कदम जिन्दगी मौत हो गयी प्रतिभा जो होश में थी क्यों आज सो गयी कल पीढ़ि...

छत्तीसगढ़ राज्य वह दृश्य अभी भी आँखों से ओझल नहीं हो पाया है जब 31 अक्टूबर 2000 को घड़ी की सुई ने रात के 12 बजने का संकेत दिया तो चारों तरफ खुशी और उल्लास का वातावरण बन गया। लोग मस्ती में झूमते- नाचते एक ...
जब मन की गहनतम गहराई से फूटती व्याकुल, सुरीली, भावभीनी आवाज़ को हवा के पंखों पर सवार कर मैंने तुम्हारा नाम लेकर तुम्हें पुकारा था ! लेकिन मेरी वह पुकार वादियों में दूर दूर तक ध्वनित प्रतिध्वनित होकर

किसी ने तो पशु खाया आप ने क्या किया ??* *आज दिल ने कहा की एक और सच बात आप सब से सांझी की जाए |* *मेरा शहर उत्तरप्रदेश सीमा से लगता है|* *यहाँ से पशुओं को ले जाया जाता है अर्थार्त पशु तस्करी का बोर्डर ,*

जन्म:1994 मौत:2010 मृत्यु का कारण:परिवार वालों के मुताबिक ऑनर किलिंग अर्थात दबंगों ने असमय गला घोंट कर मार डाला...
पिछले दस महीनों से कामनवेल्थ खेलों के "मास्कट" शेरा का रूप धरे सतीश बिदला खेलों के समापन के साथ ही बेरोजगार हो गए हैं। दुबले पतले, शर्मीले स्वभाव वाले बिदला कहते हैं कि शुरू में उन्हें कम्युनिकेशन प्रभाग
नन्हें हांथों का कमाल …
अच्छा तो हम चलते हैं
कल फिर मिलेंगे
मुझे याद है उस दिन मैं बहुत उदास था. परेशानियाँ थीं कि कम होने का नाम ही नहीं ले रहीं थीं. रात हुई तो सोने की कोशिश की पर ऐसे में नींद कहां आती है. सुबह होने को आ रही थी. तीसरा पहर खत्म हुआ तो मैंने
घर से ऑफिस के लिए जब निकलता है आदमी जाने कितनी चीजें भूलता है आदमी घर से ऑफिस तक के सफ़र में दिनचर्या बना लेता है आदमी कौन से जरूरी काम पहले करने हैं कौन सी फाइल पहले निपटानी है किसका लोन पास करना
१९९७ में बुकर सम्मान विजेता , अरुंधती रॉय ने दिल्ली में एक सेमीनार में कहा की -- " काश्मीर को आज़ादी मिलनी चाहिए , भूखे-नंगे हिंदुस्तान से "। एक साहित्यकार और सामजिक कार्यकर्ता के इस प्रकार के गैरजिम्मेदारा...
सोचा आज कुछ निबंध विबंध लिखा जाय ..ऐसे ही बैठे ठाले ....कुछ फुरसत मिल गयी है तो उसका सदुपयोग किया जाय .अब निबंध लिखना है तो कुछ विषय उसय भी चाहिए ही ..दिमाग पर जोर डालने लगा ..कौन सा विषय चुनूं कौन सा छोडू..
पिछले दो महीनों में ज्ञान दर्पण के पाठकों में से छ: पाठकों के फोन आये जिन्होंने अपने न्यूज़ पोर्टल बनवाये थे ओर वे मुझसे से इन पोर्टल्स में और क्या जुड़वाया जा सकता है की सलाह चाह रहे थे | मैंने उन पोर्टल्...
मुझे उस पार…. नहीं जाना ………..क्योंकि इस पार …* *मैं तुम्हारी संगिनी हूँ ……..उस पार निस्संग जीवन है* *स्वागत के लिए ……………इस पार मैं सहधर्मिणी कहलाती हूँ ……..मातृत्व सुख से परिपूर्ण हूँ……………….. माता – पिता ह...
कल फिर मिलेंगे