गीली पोली जमीन...- दिल्ली...पहचान तो लोगी मुझे? -ब्लाग चौपाल- राजकुमार ग्वालानी
>> Wednesday, October 13, 2010
सभी को नमस्कार करता है आपका राज
पैर से लिखने की ख्वाहिश है, उन इबारतों को, जिन्हें हाथ लिखने को तैयार नहीं. ख्वाहिशों को कब परवाह रही है किसी भी बात की. न ही उन्हें स्थापित नियमों से कुछ लेना देना है. डोर से टूटी पतंग, उड़ चली जिस ओर हव...
आंच-39 (समीक्षा) पर श्रीमती ज्ञानवती सक्सेना ‘किरण’ की कविता क्या जग का उद्धार न होगा! साधना वैद* जी एक संवेदनशील, भावुक और न्यायप्रिय ...
तुम ग्लेशियर हो !*** *रामेश्वर काम्बोज **‘**हिमांशु**’* * * ** ** ** * हे प्रियवर ! परम आत्मीय जानता हूँ मैं- आहत होता है मन , जब कोई अपना दे जाता है फाँस की चुभन । फाँस का रह –रहकर टीस देना कर देत..
नमस्कार, कामनवेल्थ खेलों में भ्रष्टाचार को लेकर बहुत हंगामा हुआ। खेल मंत्री को कहना पड़ा कि "नाक तो बचा लें।" इनका नाक बचा कि नहीं ये तो पता नहीं,लेकिन खिलाड़ियों ने अपने कौशल का परिचय देते हुए देश का नाम ...
अब ब्लागिंग मे रोजाना अलग अलग विधाओं पर इतना कुछ लिखा जाता है कि सामान्य रूप से सभी कुछ पढ पाना हमारे लिए तो क्या बल्कि किसी के लिए भी संभव नहीं है.हाँ, चर्चाकार होने के नाते,मेरा इस बात का प्रयत्न अवश्य
सुरक्षा परिषद में भारत *भारत ने संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में 19 साल बाद अस्थाई सदस्य के तौर पर अपनी जगह सुरक्षित कर ली है.सुरक्षा परिषद में ये स्थान भारत के लिए लगभग तय माना जा रहा था क्यो.
एक पाठक ने लिखा है ‘‘कामरेड चतुर्वेदी जी, यह तो अति हो गई!!!! भई दो राज्यों में सत्ता है समस्त भारत पर प्यार का आरोप थोप दिया ।’’ एक अन्य पाठक ने फेसबुक पर लिखा है ‘‘
संत जग जीवन दास, जग जीवन को समझाने की क्षमता सब में नहीं है। जो लोग प्रेम को समझने में समर्थ है, जो उस में खो जाने को तैयार है, मिटने को तैयार है, वही उस का आनंद अनुभव कर सकेगें। शायद समझ बुझ यहाँ थोड़ी ब...
मेरे ब्लॉग में आप पहले से हमारे मित्र और पडोसी पं श्रद्धानंद पांडेय जी का हनुमान पचासा और हनुमान कृपाष्टक पढ चुके हैं। वैसे तो उनकी बहुत सारी अन्य रचनाएं भी प्रकाशित हो चुकी है , यहां तक कि भोजपुरी में ...
वक़्त नहीं लगता, शहर बदल जाते हैं. ये सोच के चलो कि लौट आयेंगे एक दिन, जिस चेहरे को इतनी शिद्दत से चाहा उसे पहचानने में कौन सी मुश्किल आएगी...मगर सुना है कि दिल्ली अब पहचान में नहीं आती...कई फिरंगी आये थे ...
(संयोग कुछ ऐसा है कि एक साल पहले यह पोस्ट मैने ज़ायका बदलने के लिए डाली थी...और आज भी,.. कुछ गंभीर आलेखों के बाद हल्का-फुल्का पोस्ट करने का मन था. नवरात्रि भी चल रही है सो मौका भी सही है और दस्तूर भी.
नज़रों का स्पर्श भी ना गंवारा हो जिसे छूने या देखने की कोशिश तो दूर की बात है हवा के स्पर्श की भी जिसे चाहत ना हो रौशनी का स्पर्श भी जलाता हो जिसे रूह के मिलन को भी जो अगले जन्म का मोहताज़ बना दे इस जन्म...
कल फिर मिलेंगे
5 comments:
अच्छी चर्चा.
bahut badhiya Raj jee ...keep it up !!
बहुत बढिया चर्चा…………अच्छे लिन्क्स के साथ्।
बहुत शानदार चौपाल राजकुमार जी ! आपका चयन और श्रम प्रशंसनीय है ! बधाई एवं आभार !
बहुत अच्छी प्रस्तुति .
श्री दुर्गाष्टमी की बधाई !!!
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