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तू भी मान उड़न तश्तरी का अभियान-तभी बचेगी सबकी जान- ब्लाग चौपाल राजकुमार ग्वालानी

>> Monday, July 19, 2010

  सभी को नमस्कार करता है आपका राज

आज इस बात की बहुत जरूरत है कि पर्यावरण को सुरिक्षत रखा जाए। इसके लिए पेड़ लगाने होंगे। अपने राज्य छत्तीसगढ़ में तो इसका आगाज हो चुका है, अब सभी को इसके बारे में सोचना चाहिए। ...
 
 
परसों ज्ञात हुआ कि पत्रिका सोपानStep के जुलाई २०१० के अंक में नारदवाणी कॉलम में, जिसे भाई अविनाश वाचस्पति जी नियमित लिख रहे हैं, में एक आलेख छपा, जिसका शीर्षक था ’ जुलाई भी बन गयी जून,सखी री आया न मानसून’...
 
निष्कपट निश्छल चेहरा * **हिलते हैं, ओष्ठ अधर दोनों न बोल पाते हुए भी *अपनी प्यारी सूरत औ **आँखों के भावों ..
 
पल क्षणों में क्षण घंटों में और घंटे दिन-रात में परिणित होते जाते हैं और समय अबाध गति से बीतते जाता है। काल का पहिया ज्यों-ज्यों घूमता है उम्र तिल-तिल करके घटते जाता है। शैशवकाल लड़कपन में लड़कपन किशोरावस्था..

एक ठेकेदार ने जबलपुर में विभाग के कर्मचारियों की सुरक्षा की चिंता किये वगैर एक विद्युत ट्रांसफारमर पोल क्रमांक - पी. ८ ई पर कुंए के ऊपर डी.पी. खड़ी कर कुंए के ऊपर २०० के.व्ही.ए० का ट्रांसफारमर लगा दिया है 
 
क्या करूँ मेरी कल्पना की उड़ान तो मुक्त आकाश में बहुत ऊँचाई तक उड़ना चाहती है लेकिन मेरे पंखों में इतनी ताकत ही नहीं है और मैं सिर्फ पंख फड़फड़ा कर ही रह जाती हूँ ! क्या करूँ मेरे ह्रदय में सम्वेदनाओं का...
 
तू सामने हो तो दिल बहक जाता है ! तेरे हाथ में परिंदा भी हो तो दिल जल जाता है ! तेरे होटों के रस को महसूस करने से ही मुझ पर मदहोशी तारी होती है ! 
 
मूलवासी* (लघुकथा) -- सत्येन्द्र झा [image: J0145810] "आपका नाम ?" "संतोष।" "पिता का नाम ?" "जी आत्मबल" "घर का पता ?" "घर नहीं है, साहब ! किराए के मकान में रहता हूँ। पता उसी दिन बदल ज...
 
प्राचीन काल से ही हमारे पूरे देश में लोक कथाओं, गीतों, पहेलियों तथा लोकोक्तियों इत्यादि द्वारा गूढ से गूढ बातों को सरलता से समझाने की परंपरा रही है। खासकर कथा-कहानियां सदा से रोचक, भावप्रद तथा शिक्षापूर्ण ...
 
मै प्रेम नगर की rअहने वाली॥ प्रेम की प्रेम दीवानी हूँ,। वह तो मेरा प्रेम दीवाना॥ मै उसकी घरवाली हूँ॥ सात साल पर बात हुयी थी॥ तेरह साल में हुयी मुलाक़ात॥ सोलह साल की भइल उमारिया॥ सूझे लाग उल्का पात॥ ..

जो लोग रंगकर्म से जुड़े हैं वे इस बात को बहुत अच्छी तरह जानते हैं कि नाटक में अभिनय के लिये स्त्री पात्र जुटाना कितना कठिन काम है । निर्देशक को बहुत नाक रगड़नी पड़ती है तब कहीं जाकर नाटक में काम करने के लि...
 
अच्छा तो हम चलते हैं
कल फिर मिलेंगे 
 
 
 

10 comments:

rajesh patel July 19, 2010 at 8:30 PM  

लाजवाब चर्चा

Udan Tashtari July 19, 2010 at 8:45 PM  

बेहतरीन चर्चा!!

राम त्यागी July 19, 2010 at 9:25 PM  

बहुत बढ़िया चर्चा रही !!

अजित गुप्ता का कोना July 19, 2010 at 10:09 PM  

मैंने तो कई पोस्‍ट यहाँ आकर ही पढ़ी, पता नहीं कैसे निगाहों से निकल जाती हैं। आपका आभार।

संगीता स्वरुप ( गीत ) July 19, 2010 at 11:57 PM  

बहुत उम्दा चयन...आभार

vandana gupta July 20, 2010 at 12:56 AM  

आज तो काफ़ी लिंक्स मिल गए…………आभार्।

एक विचार July 20, 2010 at 10:37 AM  

बहुत अच्छा ...

http://vicharvichar.blogspot.com

अनामिका की सदायें ...... July 20, 2010 at 11:07 AM  

अच्छे लिंक्स मिले.

आभार.

Sadhana Vaid July 23, 2010 at 6:56 AM  

आज पहली बार इस चर्चा को देखा ! मेरी कविता के चयन के लिये बहुत बहुत धन्यवाद ! सभी लिंक्स सुन्दर और महत्वपूर्ण हैं !

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