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एक और एक बराबर दो रोटियां, ख्वाब और ख्वाहिश- ब्लाग चौपाल राजकुमार ग्वालानी

>> Thursday, July 1, 2010

 सभी को नमस्कार करता है आपका राज
 और करते हैं आज की चर्चा की आगाज 


शानू शुक्ला बता रहे हैं- एक और एक बराबर दो रोटियां
वहां एक क्लास में एक अध्यापक महोदय पूछ रहे थे प्रश्न पढाये हुए पाठ में से अपने क्लास में उपस्थित छात्रों से इसी क्रम में उन अध्यापक महोदय ने सामने बैठे एक छात्र से पूछा क़ि बताओ बेटा एक और एक होते
लबों पर मुस्कान और आँखों में नमी है ख़्वाबों के अम्बार पर ख्वाहिशों की कमी है . 
अपनी पुरानी साड़ियों और इधर-उधर की चिन्दियों को जोड़कर मां ने इसलिए नहीं बनाई थी कथरी कि हम गरीब थे.* * जब कभी भी हम पांच भाई लड़-झगड़कर जमा लेते थे पूरे बिस्तरों पर कब्जा तब मां अपनी कथरी निकालकर लेट जाया...
सार्वजनिक स्थानों पर लगे कम्प्यूटरों से पोर्नोग्राफी देखना अपराध है। उसी तरह हमारे बीच में कुछ ऐसे भी लोग हैं जो पोर्न के बारे में यह तर्क देते हैं कि .यह तो महज फोटोग्राफी है। पोर्नोग्राफी महज 
जब तक बहारे आती रहेंगी, तब तक फूल खिलते रहेंगें तेरी यादे जेहन में रहेंगी, जब तक ये दिल जिन्दा रहेगा. 00000 तेरे नफ़रत भरे अंदाजों को देख कर मैं कविताएं उकेरता हूँ तू ही बता दे इस कलम की अदा क्या किसी से कम...
मैंने तुम्हारे लिए एक खिड़की खोल दी है ताकि तुम स्वच्छंद हवा में, अनंत आकाश में, अपने नयनों में भरपूर उजाला भर कर , अपने पंखों को नयी ऊर्जा से सक्षम बना कर क्षितिज के उस पार इतनी ऊँची उड़ान भर सको कि सार...
यह सर्वविदित तथ्य है कि छत्तीसगढ़ की लोकगाथा पंडवानी महाभारत कथाओं का लोक स्वरूप है। वैदिक महाभारत के नायक अर्जुन रहे हैं जबकि पंडवानी के नायक भीम हैं। पिछले पोस्ट में पंडवानी की तथाकथित शाखा और शैली के 
(रात में बेटी के फोन की आवाज़ से जग कर वे,अपना पुराना जीवन याद करने लगती हैं.उनकी चार बेटियों और दो बेटों से घर गुलज़ार रहता. पति गाँव के स्कूल में शिक्षक थे.बड़ी बेटी ममता की शादी ससुर जी ने पति की इच...
 यह ब्लागवाणी को क्या हो गया है? बीस-पच्चीस दिन दूर रहने के बाद अब जब भी इसे खोलता हूं तो वही 14जून का ही प्रवचन सुनने (देखने) को मिल रहा है। वहीं पर अटकी हुई मिलती है। कुछ ज्यादा ही गड़बड़ है या कोई और कारण ..

विजय विद्रोही* स्टार न्यूज के कार्यकारी संपादक हैं।विजय जी से vijay.vidrohi@hotmail.com पर संपर्क किया जा सकता है मनमोहन सिंह सरकार आम आदमी के लिए जिन योजनाओं को शुरू कर रही है, उन पर हर साल करीब सवा ...
काजू भुने प्लेट में विह्स्की गिलास में। उतरा है रामराज विधायक निवास में। पक्के समाजवादी हैं तस्कर हों या डकैत, इतना असर है खादी के उजले लिबास में।आजादी का वो जश्न मनायें तो किस तरह, जो आ गए फुटपाथ पर घर की ...
यह रचना (हरियाणवी रागिनी) मेरे मित्र "कृष्ण टाया" जी की है। पसन्द आये तो साधुवाद जरूर दीजियेगा। *कवि ने पुराने समय और आज के जमाने की तुलना की है। बीते समय में रिश्तों की क्या अहमियत होती थी और आज के रिश्ते...
अच्छा तो हम चलते हैं
कल फिर मिलेंगे 

5 comments:

समयचक्र July 1, 2010 at 8:47 PM  

सुन्दर प्रस्तुति...चर्चा बढ़िया लगी. ...मेरी पोस्ट को सम्मिलित करने के लिए आभार .....

संगीता स्वरुप ( गीत ) July 1, 2010 at 10:08 PM  

बेहतरीन चर्चा....मेरे ब्लॉग को शामिल करने के लिए शुक्रिया

sanu shukla July 2, 2010 at 1:00 AM  

बहुत सुंदर भाईसाहब..!! मेरे रचना को स्थान देने के लिए आभार...

शिवम् मिश्रा July 2, 2010 at 7:38 AM  

बेहद उम्दा चर्चा !

shikha varshney July 4, 2010 at 7:56 AM  

वाह बहुत सुन्दर चर्चा..

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