नत्था को आगे काम न मिला तो मैं बनाऊंगा पीपली डी- लाइव, पीपली में 'मौत की रौनक' ज़ाया नहीं गई- ,ब्लाग चौपाल- राजकुमार ग्वालानी
>> Tuesday, August 17, 2010
सभी को नमस्कार करता है आपका राज </a>
ज़िंदगी के एक सिरे को पकड़ो तो दूसरा निकल जाता है. इसी कश्मकश में रचनात्मकता धरी की धरी रह जाती और समय पंख लगाकर उड़ता चला जाता है. कई साल बाद फिर ऐसा मौका आया जब फिल्म के नाम पर हम सारे पत्रकार दोस्त फिर ज...
हिन्दी ब्लोग्गिंग का स्वर्णिम काल आया है
Obama Demands Access to Internet Records, in Secret, and Without Court Review The Obama administration is seeking authority from Congress that would compel internet service providers (ISPs) to turn over ...
आचार्य श्रीराम शर्मा की सूक्तियाँ (1) किसी को आत्म-विश्वास जगाने वाला प्रोत्साहन देना ही सर्वोत्तम उपहार है। (2) दुनिया में आलस्य को पोषण देने जैसा दूसरा भयंकर पाप नहीं है। (3) सज्जनता ऐसी ...
शरद कोकास कहते हैं- ये तो साला निकला पक्का हिंदूवाला - नारायण सुर्वे
कामगार कवि *नारायण सुर्वे *नहीं रहे । पता नहीं किस माँ ने उन्हे जन्म दिया था . यह 1926 की बात है लेकिन एक मज़दूर गंगाराम सुर्वे को वे मैले कुचैले कपड़ों में मुम्बई के एक फुटपाथ पर भटकते
सब की जुबा पर एक ही राग है देश का कैसा बिगड़ा हाल है ? कोई गरीबी को रोता है तो किसी ने नेता को कोसा है कोई चीखता कानून पे तो कोई गुंडागर्दी पे भड़कता है . कोई मुझे एक बात बताये ... अपने गि...
रसों एक और स्वतंत्रता दिवस "निपटा" घर लौट गये सब छुट्टी मनाने, आराम करने। वही हर साल जैसा यंत्रवत माहौल था। विडंबना देखें, इस दिन हर संस्था को एक नोटिस निकलवाना पड़ता है कि कल झंडोतोलन के समय सबका उपस्थित ...
मैं बहुत शर्मिंदा हूँ कि समय कुछ कम है इसलिए आजकल आपके ब्लॉग पर झाँक नहीं पा रहा.. पर वादा कि जल्दी ही आऊंगा.. अगर बुरा ना मानें तो इस कविता के बारे में और इसके शीर्षक के बारे में अपनी बेशकीमती राय जरूर द...
इस्मत ज़ैदी- चला भी जाऊँ तो तुम इंतज़ार मत करना। और अपनी आँख कभी अश्कबार मत करना। उलझ न जाए कहीं दोस्त आज़माइश में, कि ख़्वाहिशें कभी तुम बेशुमार मत करना। मेरी हलाल की रोज़ी सुकूँ का बाइस है, इनायतों से म...
बरसते मौसम में भीगता तन मन को ना भिगो पाया मन के आँगन की धरती तो कब की सूखे की भयावह मार से फट चुकी है अब अहसासों की खेती ना कर सकोगे तमन्नाओं की फसल ना उगा सकोगे भाव ना कोई जगा सकोगे सावन कितना बर...
मैं एक विचित्र ऊहापोह में था भाई सतीश जी ने उबार लिया सही समय पर सही सलाह दे डाली अब मैं निश्चिन्त हूँ लेकिन इस सब के बावजूद दुष्यंत कुमार का एक मतला याद आ रहा है कि मत कहो आकाश में कोहरा घना है ये कि...
अनिल अतरी बता रहे हैं- डेंगू का प्रकोप दिल्ली में बढ़ता ही जा रहा है...
डेंगू का प्रकोप दिल्ली में बढ़ता ही जा रहा है...सरकार चाहे जो दावे करे लेकीन डेंगू के मरीजों की संख्या सरकारी आंकड़ों से शायद कहीं ज्यादा है...इसकी बानगी अशोक विहार फेज- 4 की बुनकर कोलोनी है...करीब एक ह...
काफी साल पहले, धर्मयुग में एक कविता पढ़ी थी....और डायरी में नोट कर ली थी (अब अफ़सोस हो रहा है,कवि का नाम क्यूँ नहीं नोट किया..)...और उसी हफ्ते अखबार में इसी कविता के भाव से सम्बंधित एक खबर पढ़ी कि एक भाई,
शबनम खान बात रही हैं- बेनाम रिश्ता
हम तुम मिलकर आओ एक ऐसा एहसास जगाए रिश्तों की परिभाषा से दूर बेनाम एक रिश्ता जी जाए.... जिसमें “मै” भी साँसे ले और “तुम” भी जगह पाए मिसाल भले न बने हम पर सुकून ज़िन्दगी में आए.... न तुम मुझ पर हक़ ज...
कल फिर मिलेंगे
5 comments:
बहुत सुन्दर चौपाल सजाई है…………आभार्।
बहुत बढ़िया लग रही है चौपाल.
मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार.
सुंदर चर्चा।
बढ़िया लिंक मिले खासकर शीर्षक वाला.. आभार..
.
बहुत बढ़िया रही है ,चर्चा...
Post a Comment